तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulseedaasjee ka jeevan parichy in Hindi)तुलसी जयंती 2022

तुलसीदास जी का जीवन परिचय गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के महान कवि,महान संत ,भक्ति रस के कवि राम भक्त उनके जीवन परिचय ,रचनाएं ,भक्ति भावना ,विचार, का हम एक परिचय प्राप्त करतें हैं गोस्वामी तुलसीदास एक महान कवि होने की साथ साथ एक महान संत एवं सृजन करता भी है। श्री राम के परम भक्त…

तुलसीदास जी का जीवन परिचय

गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के महान कवि,महान संत ,भक्ति रस के कवि राम भक्त उनके जीवन परिचय ,रचनाएं ,भक्ति भावना ,विचार, का हम एक परिचय प्राप्त करतें हैं

गोस्वामी तुलसीदास एक महान कवि होने की साथ साथ एक महान संत एवं सृजन करता भी है। श्री राम के परम भक्त होने के कारण भक्ति रस में डूबे हुए उन्होंने अनेक काव्य लिखें जिनमें

रामचरितमानस को एक महाकाव्य के रूप में विश्व स्तर पर ख्याति मिली। तुलसीदास जी के काव्य की खास विशेषता यह है कि उनके काव्य को संगीत के साथ गाया जा सकता है।

तुलसीदास जी जीवन परिचय

तुलसीदास स्वयं कुशल कथावाचक थे और रामकथा को गा गा कर लोगों को सुनाया करते थे। उन्होंने जीवन के हर रंग को बड़े करीब से देखा था।

तुलसीदास जी राम भक्त होने के साथ हनुमान जी के भी परम भक्त थे। हनुमान जी को संकट मोचन कहकर उनका गुणगान किया लेकिन तुलसीदास जी का प्रारंभिक जीवन बहुत ही विविधतापूर्ण रहा। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव उन्हें देखने पड़े।

उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है उनकी रचनाओं से उनके जीवन के बारे में पता चलता है जिसके अनुसार तीर्थराज प्रयाग के नजदीक बांदा जिला में राजापुर गांव में उनका जन्म हुआ था।

उनके जीवन से संबंधित अनेक उक्तियाँ उनकी रचनाओं में मिलती है। जो उनकी जीवन संबंधी तथ्यों को प्रमाणित करती है।

गोस्वामी जी का जन्म 1532 ईस्वी में अर्थात 1589 विक्रम संवत में कस्बा राजापुर जिला बांदा में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित आत्माराम था, और माता का नाम हुलसी था। यद्यपि पिता का नाम का उल्लेख इनकी किसी भी कृति में नहीं मिलता परंतु माता को उल्लेख उनकी कृतियों में मिलता है।

इनके विषय में यह एक प्रसिद्ध जनश्रुति है कि यह अब अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा हुए थे अतः इनके ज्योतिषाचार्य पिता आत्माराम में इन्हें जन्म से ही अशुभ मानकर दासी के हवाले कर दिया था। इन को जन्म देते समय प्रसव पीड़ा से उनकी माता का भी देहांत हो जाने पर इनके पिता का क्रोध और भी स्वाभाविक हो गया।
इनका बचपन का नाम राम बोला था। सूत्रों के अनुसार जन्म लेते हैं उन्होंने राम नाम का उच्चारण किया था इसलिए इनका नाम राम बोला रख दिया गया ।
बड़े होने पर जब यह बाबा नरहरी की शरण में गए तब तुलसी के पौधे के नीचे सोते हुए उनके मस्तक पर तुलसी के पत्तों को पड़ा देखकर बाबा नरहरिदास ले उनका नामकरण तुलसीदास कर दिया उन्होंने अपनी रचनाओं में दोनों ही नामों का उल्लेख किया है
1 राम को गुलाम नाम राम बोला राख्यो राम ।
2 राम नाम को कल्पतरु कलि कल्यान निवास ।
गोस्वामी जी युवावस्था में संस्कृत भाषा और वेद शास्त्रों का पांडित्य प्राप्त कर काशी गए।

इनकी की विद्वता से प्रभावित होकर पास के गांव के किसी ब्राह्मण ने अपनी पुत्री रत्नावली का विवाह इनसे कर दिया। रत्नावली से उन्हें विशेष मोह था। एक बार रत्नावली इन्हें बिना बताए उनकी अनुपस्थिति में मायके चली गई तो यह आधी रात को बाढ़ चढ़ी नदी को पारकर रत्नावली के गांव जा पहुंचे।

घर के छज्जे पर लटक रही रस्सी को पकड़कर रत्नावली के कक्ष में जा पहुंचे जिससे यह रस्सी समझ कर ऊपर आए थे सांप था। उस समय रत्नावली इन्हें बहुत फटकार और कहा कि-

अस्थि चर्ममय देह मम तासो ऐसी प्रीति।जो होती श्रीराम मेंह होती ना तौ भवभीति

कहते हैं की पत्नी के द्वारा की गई इस भर्त्सना की बाद से ही तुलसीदासजी का मोह सांसारिक आकर्षण से विरक्त हो गया था।

वे रामभक्ति में लीन हो गए । विनम्र और सच्चे भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में यश प्राप्त कर लिया था। संवत 1680 गंगा नदी के किनारे सावन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इस विषय में भी निम्नलिखित दोहा मिलता है


संवत सोलह सौ अस्सी ,असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर ।

तुलसीदास जी की रचनाएं

गोस्वामी तुलसीदास लोकमानस के कवि थे ।इनकी भाषा शैली बहुत ही सरल रही है। अपनी रचनाओं में अवधी और ब्रजभाषा दोनों का प्रयोग किया है । इसका ज्ञान उनकी रचनाओं के विषय अवलोकन से हो जाता है । गोस्वामीजी ने छोटे बड़े सब मिलाकर कई ग्रंथों की रचना की जिसमे 12 (बारह ) ग्रंथों के नाम निम्नलिखित हैं –

  • रामलला नहछू

राम के यज्ञोपवीत उत्सव के पूर्व में होने वाले नहछू के उत्सव को ,जिसमें यज्ञोपवीत संस्कार के पूर्व बालक के पैर के नाखून काटकर महावर लगाई जाती है । इसकी भाषा अवधी है ।

  • वैराग्य संदीपनी

इस रचना में संत स्वभाव का वर्णन ,संतों के लक्षण ,महिमा आदि का वर्णन है । इसकी भाषा अवधी मिश्रित ब्रजभाषा है ।

  • रमाज्ञा प्रश्न

रामाज्ञा प्रश्न के समस्त कांडों में कथा के साथ शकुन अपशकुन का विचार किया गया है । यह ग्रंथ ब्रजभाषा में है ।

  • जानकी मंगल

जानकी मंगल का विषय सीता राम विवाह है । इसकी भाषा पूर्वी अवधी है ।

  • श्री रामचरित मानस

रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी का सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जो हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ का भी स्थान रखता है । रामचरित मानस के माध्यम से तुलसीदास जी ने लोक कल्याणकारी भावना को स्थान दिया है । इसकी रचना संवत 1631 है । इसकी भाषा अवधी है ।

  • पार्वती मंगल

यह एक खंडकाव्य है । इसमें शिव पार्वती के विवाह का वर्णन है इसकी भाषा पूर्वी अवधी है ।

  • गीतवाली

इसमें सम्पूर्ण रामकथा काव्य के रूप में वर्णित है । यह ब्रजभाषा में है ।

  • कृष्ण गीतवाली

इसमें कृष्ण की लीलाओं से संबंधित पद हैं । यह ग्रंथ ब्रजभाषा में है ।

  • बरवै रामायण

बरवै रामायण में रामकथा को सात खंडों में विभक्त किया गया है । इसकी भाषा अवधी है ।

  • दोहवाली

दोहवाली दोहों और सोरठों का संग्रह है । यह ब्रजभाषा में है ।

  • कवितावली

कवितावली कवित्त छंदों का संग्रह है । यह ब्रजभाषा में है ।

  • विनय पत्रिका

विनय पत्रिका गोस्वामी जी की अंतिम कृति मानी जाती है । यह ब्रजभाषा में है।

इन मशहूर रचनाओं के साथ चार रचनाएं भी बहुत मशहूर हैं ,जो कि हनुमान चालीसा ,हनुमान अष्टक । हनुमान बाहुक और तुलसी सतसाई है ।

तुलसीदास जी की भक्ति भावना

तुलसी का युग व्यक्ति आंदोलन का युग था । देश की स्थिती ऐसी थी कि निराश जनता भगवान के अतिरिक्त अपना कोई भी अन्य सहारा नहीं देख रही थी। समाज में भक्तों के दो वर्ग थे जो भक्ति के स्त्रोत,आराध्य के स्वरूप, साधना आदि के आधार पर बने थे।

एक वर्ग सगुण भक्ति की धारा का था ,इसकी दो प्रमुख शाखाएं हुईं ,रामभक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा तथा दूसरा वर्ग निर्गुण भक्ति धारा का हुआ, इसकी दो प्रमुख शाखाएं ज्ञानमार्गी शाखा और प्रेम मार्गी शाखा। ज्ञानमार्गी शाखा को संत काव्यधारा नाम से जाना जाता है,और प्रेम मार्गी शाखा को सूफी काव्य धारा के नाम से जाना जाता है।

तुलसीदास सगुणोपासाक राम भक्त थे । अपने युगधर्म को पहचानते हुए उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने अनुभव किया की दिशाहीन भ्रमित समाज की दिए निर्गुण ब्रह्म का उपदेश व्यर्थ है। मर्यादाहीन दिशाहीन समाज को राह पर लाने के लिए उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भक्ति का साधन अपनाया और लोक मंगलकारी उपदेश दिया।

उन्होंने अनुभव किया की व्यथित समाज को किसी निर्गुण ब्रह्म कि नहीं अपितु दुखियों की पुकार सुनने वाले, तत्काल पहुंचकर उनकी रक्षा करने वाले, अधर्म का नाश करके धर्म की प्रतिष्ठा करने वाले किसी सगुण साकार ईश्वर की आवश्यकता है। जनता को लोक रक्षक वर्णाश्रम-धर्म पालक मर्यादा पुरुषोत्तम राम काअबलंबन ही अपेक्षित है।अतः तुलसीदास जी ने राम की दास्यभक्ति की ।

तुलसी दास जी के विचार


तुलसीदास जी की सामाजिक लोकवादी दृष्टि मध्यकाल की सभी कवियों में सर्वाधिक व्यापक एवं गहरी है। तुलसी के यहां राम राज्य की स्थापना की कल्पना की गई है । जहां लोग जीवन के प्रत्येक पक्ष में संतुलन दिखाई देता है

तुलसीदास जी के समय समाज व्यवस्था

तुलसी मध्य काल के कवि हें जो सामंती मूल्यों से ग्रस्त काल था । यद्यपि उस जड़ता के परिवेश को तोड़कर तुलसीदास जी ने नए मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया है। किंतु कहीं-कहीं उनकी दृष्टि परंपरागत मूल्यों से प्रभावित दिखती है समाज के तीन महत्वपूर्ण पक्षों – वर्ण व्यवस्था ,नारी की स्थिति तथा पारिवारिक मूल्यों के संदर्भ में हम तुलसीदास के दृष्टिकोण की चर्चा कर सकते हैं ।

तुलसीदास जी के समय वर्ण व्यवस्था

तुलसीदास जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते हैं। कहीं-कहीं उनका दृष्टिकोण शूद्रों के प्रति कट्टर दिखाई देता है ।


पूजेअ विप्र सकल गुण हीना,शुद्र न गुण गण ज्ञान प्रवीना
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी

तुलसीदास जी की नारी विषयक भावना

तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस में नारियों को सम्मानजनक रूप में प्रस्तुत किया गया है जिससे यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ही सिद्ध होता है ।
तुलसीदास जी की नारी भावना विवाद का विषय रही है। उन्होंने कुछ प्रसंगों में नारी की निंदा की है तो कुछ स्थानों पर प्रशंसा भी की है । कुछ विद्वानों का मत है की तुलसीदास जी ने नारी निंदा वहीं पर की है जहां वह तप व निवृत्ति में बाधक है।

तुलसी की युग में नारी की स्थिति दुखद थी उसे विवशता और आत्मदान ,बलिदान और दासता का जीवन व्यतीत करना पढ़ रहा था।

तुलसी की रामचरितमानस से समुद्र का यह कथन बताता है की उस समय के समाज में नारी की तुलना ढोल गवार शूद्र और पशुओं से की जा रही थी
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी
पूरी चौपाई इस प्रकार है


प्रभु भल कीन्ह मोहि सीख दीन्हीं । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं ।।
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।

यहां सागर श्री राम जी से कह रहा है कि प्रभु आपने अच्छा किया मुझे सीख दी किन्तु ये मर्यादा भी आप की बनाई हुई है ढोल गवार शुद्र पशु और स्त्री भी शिक्षा के अधिकारी हैं।


तुलसीदास जी के नारी विषयक उपर्युक्त कथनों से उनकी परंपरावादी दृष्टि दिखाई देती है किंतु कुछ प्रसंगों को अपवाद माने तो नारी के संबंध में नकारात्मक उपयोग का प्रयोग करने वाले अधिकांश चरित्र खलनायक वर्ग के हैं जिनके साथ लेखक की मनोवृति का साथ नहीं माना जा सकता परिवार के भीतर नारी की सुरक्षा भाव उत्पन्न करने के इच्छुक है।


अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुन सठ कन्या सम ये चारी।
इन्हीं कुदृष्टि बिलौके जोई । ताहि बंधे कुछ पाप ना होई ।।


मध्यकालीन जड़ता के परिवेश में बंधनों में बंधी नारी की परतंत्रता के प्रति उनमें आक्रोश दिखता है
कत विधि सृजि नारी जग माही । पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।।

पारिवारिक जीवन का आदर्श

तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम के परिवार के माध्यम से आदर्श परिवार का व्यवहारिक रूप दिखाया है। कवितावली के कलियुग प्रसंग में भी भारतीय समाज के परिवार का आदर्श रूप प्रस्तुत किया है। उन्होंने संयुक्त परिवार की सफलता के लिए कर्तव्यों के निर्वाह पर अत्यधिक बल दिया है। राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पिता तथा आदर्श पति का चरित्र प्रस्तुत करते हैं। कौशल्या तथा सुमित्रा आदर्श माता का और सीता आदर्श पत्नी का चरित्र प्रस्तुत करती है। लक्ष्मण और भरत ही आदर्श भाई है । कौशल्या आदर्श माता हैं । वे वात्सल्य की मूर्ति है । उन्हें राम व भरत में अंतर नहीं होता। सीता पवित्र तथा कर्तव्य परायण पत्नी है। वे परिवार के सभी बड़ों की सेवा करती हैं और अंहकार से पूर्णतः रहित हें

लोक कल्याण

तुलसीदास भक्ति आंदोलन की महान पुरोधा थे। वे लोक धर्म में विश्वास रखते थे । लोक धर्म का अर्थ लोक कल्याण था। तुलसी के अनुसार यदि हिंसा का सहारा लेकर भी लोक कल्याण की भावना स्थापित होती है तो फिर भी हिंसा जायज है।

मर्यादा पालन

रामचरित मानस में मर्यादा पालन का चित्रण तुलसीदास द्वारा किया गया है । वे मर्यादा पालन में विश्वास रखते थे ।

समन्वयवादी

तुलसी के मानव मूल्य की अन्य विशेषता उनका समन्वयवादी होना था। रावण के खिलाफ युद्ध में मानव के सहकर्मी के रूप में युद्ध लड़ना मानव जानवर का समन्वय है । सबरी के जूठे बेर खाना शूद्र क्षत्रिय समन्वय है ।

मानव प्रेम

तुलसी का मूल संदेश है मानव प्रेम।

राजयव्यवस्था

पूरे भक्ति काल में तुलसी अकेले ऐसे रचनाकार है जोकि राजनीति के प्रश्नों से टकराते हैं । वे मानते हैं कि अच्छे समाज की शर्त अच्छी राजनीति है। यही कारण है कि वे अपने समय की राजनीति की विसंगतियों की कटु आलोचना करते हैं और साथ में श्रेष्ठ वैकल्पिक व्यवस्था की कल्पना भी करते हैं।
तुलसी ने रामराज्य की संकल्पना रखी थी। राम राज्य में पुरुष एवं नारी के लिए एक ही नियम है। पुरुषों को भी एक ही नारी व्रत का पालन करने की वकालत की गई है। साथ ही तुलसी एक ऐसे समाज की बात करते हैं । जिसमें कोई अज्ञानी या भूखा ना हो तुलसी मानव कल्याण प्रजा के हित में देखते हैं। राजा और प्रजा के संघर्ष में तुलसी प्रजा के साथ हैं ।

अर्थव्यवस्था

तुलसी मध्य काल के संभवत अकेले कवि हैं जिन्होंने आर्थिक समस्याओं को कविता की समस्या के रूप में स्वीकारा है। आम आदमी की आर्थिक समस्याओं को समझा एवं उन्हें कविता के केंद्र में स्थापित किया उनकी स्पष्ट मान्यता है कि जगत में गरीबी से बड़ा कोई दुख नहीं है।

भाषा संबंधी दृष्टिकोण

भाषा के संबंध में तुलसी का दृष्टिकोण जनवादी है। लोक मंगलकारी चेतना से युक्त होने के कारण रामचरितमानस की रचना उन्होंने अवधी भाषा में की जो कि लोक भाषा है।

गोस्वामी तुलसीदास मध्यकाल के एक महान कवि थे जिन्होंने अपनें भक्ति ग्रंथों के माध्यम से समाज में अनेक मूल्यों ,आदर्शों एवं नैतिकता की स्थापना की।

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