गुरु नानक देव जी: जीवन परिचय, उदासियाँ, ठहराव , उत्तराधिकारी, उपदेश और उनकी शिक्षा का प्रभाव

गुरु नानक देव जी: जीवन परिचय, उदासियाँ, ठहराव, उत्तराधिकारी, उपदेश और उनकी शिक्षा का प्रभाव इस लेख में दिया जा रहाा हे। जीवन परिचय गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई. में तलवंडी नामक गाँव (जो वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है) में हुआ…

गुरु नानक देव जी
गुरु नानक देव जी

गुरु नानक देव जी: जीवन परिचय, उदासियाँ, ठहराव, उत्तराधिकारी, उपदेश और उनकी शिक्षा का प्रभाव इस लेख में दिया जा रहाा हे।

जीवन परिचय

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई. में तलवंडी नामक गाँव (जो वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। गुरु नानक का बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक झुकाव था। उन्होंने समाज के असमानताओं, धार्मिक कट्टरता, और अंधविश्वासों को गहराई से महसूस किया। उनकी शिक्षाएँ मानवता, प्रेम, और समानता पर आधारित थीं, जो बाद में सिख धर्म की नींव बनीं।

गुरु नानक जी ने बचपन से ही वैराग्य और आध्यात्मिक चिंतन की प्रवृत्ति दिखाई।14 वराह की उम्र में उनकी शादी सुलखबी के साथ कर दी गई। समय के नियमानुसार नानक साहब को दो पुत्रों की प्राप्ती हुई। उनके नाम श्रीचंद और लक्ष्मीचंद थे। उनके बाल सखा मरदाना, जो मुस्लिम समुदाय से थे, उनके साथ हर कदम पर रहे और गुरु नानक की शिक्षाओं को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।सुल्तानपुर के पास बाईन नदी में स्नान करते समय उन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ। नानक जी ने ईश्वर के एकत्व में आस्था और मानवता की भलाई के लिए जीवन जीने पर बल दिया।

उदासियाँ (यात्राएं)-

गुरु नानक जी ने चार प्रमुख उदासियाँ (धार्मिक यात्राएं) कीं, जिनके माध्यम से उन्होंने अपने उपदेश और शिक्षाओं को दूर-दूर तक फैलाया। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में श्रीलंका, पश्चिम में मक्का-मदीना और पूर्व में असम तक का भ्रमण किया। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को धार्मिक कट्टरता से दूर ले जाकर ईश्वर की सच्ची भक्ति की ओर प्रेरित करना था।

पहली उदासी (1496-1506)

गुरु नानक ने अपनी पहली यात्रा में भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों का दौरा किया। उन्होंने हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, दिल्ली और पंजाब के अन्य स्थानों पर प्रवचन दिए। वे तुर्की, अफगानिस्तान और अरब देशों में भी गए और वहाँ के लोगों से मिले।

दूसरी उदासी (1506-1513)

इस यात्रा में गुरु नानक दक्षिण भारत की ओर गए और कांचीपुरम, रामेश्वरम, श्रीलंका आदि स्थानों पर अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया। वे विभिन्न धार्मिक गुरुओं और संतों से भी मिले और उन्हें एकता और प्रेम का संदेश दिया।

तीसरी उदासी (1514-1518)

गुरु नानक पश्चिम की ओर मक्का, मदीना और बगदाद की यात्रा पर गए। वहाँ उन्होंने मुस्लिम धर्मगुरुओं से संवाद किया और यह बताया कि ईश्वर का निवास हर दिशा में है। मक्का में उन्होंने एक महत्वपूर्ण धार्मिक विवाद को शांत किया और सभी को यह समझाया कि ईश्वर का कोई खास निवास स्थान नहीं है, वह सर्वत्र है।

चौथी उदासी (1518-1521)

इस यात्रा के दौरान गुरु नानक ने पूर्वोत्तर भारत, असम, बंगाल और तिब्बत का दौरा किया। यहाँ उन्होंने बौद्ध और हिंदू धार्मिक गुरुओं से बातचीत की और समानता, करुणा, और प्रेम के संदेश को फैलाया।

ठहराव

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, गुरु नानक जी ने पंजाब के करतारपुर में निवास किया और वहाँ एक समुदाय की स्थापना की, जिसे “संगत” कहा गया। करतारपुर में उन्होंने एक ऐसे समाज का निर्माण किया जो सभी जाति, धर्म, और वर्ग के भेदभाव से मुक्त था। यहाँ वे अपने अनुयायियों के साथ खेती और साधारण जीवन जीते थे और साथ ही साथ लोगों को सत्संग, कीर्तन और सेवाभाव का महत्व सिखाते थे।उन्होंने यहाँ लंगर की व्यवस्था (जिसे निः शुल्क रसोई भी कहा जाता है ) आरंभ की

उत्तराधिकारी

गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम दिनों में अपने सबसे प्रिय शिष्य भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए। उन्होंने गुरु अंगद देव जी को अपने शिक्षाओं और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी। इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव को और भी सुदृढ़ किया, गुरु के शिष्य सिक्ख कहलाने लगे अतः सिक्ख धर्म की उत्पत्ति हुई । गुरु नानक जी ने ही खालसा पंथ की नीव डाली थी ,इसके बाद दूसरे गुरुओं ने इस पर चिनाई का काम किया तथा दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ या कामन वेल्थ (सार्वजनिक संपत्ति )रूपी इमारत का निर्माण पूरा किया ,जिससे यह आगे चलकर एक विशाल और संगठित धर्म बन सका।गुरु नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 में करतारपुर (पाकिस्तान )में हुई

उपदेश और शिक्षा-

एक ओंकार

गुरु नानक ने ईश्वर को एक माना, जिसे “एक ओंकार” के रूप में जाना जाता है। यह उनकी प्रमुख शिक्षा थी कि ईश्वर एक है और वह सबके लिए समान है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो।

नाम जपो, किरत करो, वंड छको

गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि वे ईश्वर का नाम सुमिरन करें (नाम जपो), ईमानदारी से काम करें (किरत करो), और अपनी आय का एक हिस्सा जरूरतमंदों के साथ बांटें (वंड छको)।

नारी का सम्मान

उस समय समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। गुरु नानक जी ने नारी को उच्च स्थान दिया और कहा कि नारी ही जीवन की उत्पत्ति है, इसलिए उसका सम्मान करना चाहिए।

समानता और न्याय

गुरु नानक जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरोधी थे। उन्होंने सभी मानवों को एक समान बताया और कहा कि ईश्वर की दृष्टि में सभी एक जैसे हैं।

भक्तिवाद

गुरु नानक जी ने सभी को यह सिखाया कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सत्य, करुणा, और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ईश्वर को पाया जा सकता है।

शिक्षा का प्रभाव-

गुरु नानक जी की शिक्षाओं का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो मानवता, प्रेम, और सेवा पर आधारित था। उनकी शिक्षाओं ने न केवल सिख धर्म का मार्गदर्शन किया, बल्कि पूरे भारतीय समाज में एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन भी लाया।

धार्मिक सामंजस्य

गुरु नानक जी ने हिंदू-मुस्लिम कट्टरता को समाप्त करने की दिशा में कार्य किया। उन्होंने दोनों धर्मों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया।

जाति प्रथा का विरोध

गुरु नानक जी के संदेश ने जाति प्रथा के खिलाफ एक मजबूत आधार प्रदान किया। उन्होंने “लंगर” की परंपरा शुरू की, जिसमें सभी धर्मों और जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे। यह एक बड़ा सामाजिक सुधार था, जिसने समाज के सभी वर्गों के बीच एकता और समानता का संदेश दिया।

महिलाओं के अधिकार-

गुरु नानक जी की शिक्षाओं ने महिलाओं को भी एक नया दृष्टिकोण दिया। उन्होंने महिला अधिकारों और उनकी गरिमा पर जोर दिया, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।

सामाजिक और नैतिक सुधार

गुरु नानक जी की शिक्षाओं ने समाज में नैतिक और आध्यात्मिक सुधार किए। उन्होंने लोगों को सत्य, प्रेम, और करुणा का महत्व समझाया, जिससे समाज में नैतिकता की भावना प्रबल हुई।

निष्कर्ष

गुरु नानक देव जी का जीवन और उनके उपदेश मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएँ न केवल उस समय के समाज के लिए महत्वपूर्ण थीं, बल्कि आज भी समाज के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए उतनी ही प्रासंगिक हैं। उनकी यात्राओं, उपदेशों और सामाजिक सुधारों ने न केवल सिख धर्म की नींव रखी, बल्कि उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ सभी समान हों और प्रेम, करुणा, और सेवा का महत्व हो।

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